भारतीय हॉकी टीम का सुनहरा पल आना हुआ आरंभ

आखिर मॉस्को से शुरू हुआ 41 साल का इंतजार तोक्यो में खत्म हुआ। अतीत की मायूसियों से निकलकर भारतीय पुरूष हॉकी टीम ने पिछड़ने के बाद जबर्दस्त वापसी करते हुए रोमांच की पराकाष्ठा पर पहुंचे मैच में जर्मनी को 5-4 से हराकर ओलंपिक में कांस्य पदक जीत लिया। आखिरी पलों में ज्यों ही गोलकीपर पीआर श्रीजेश ने तीन बार की चैम्पियन जर्मनी को मिली पेनल्टी को रोका , भारतीय खिलाड़ियों के साथ टीवी पर इस ऐतिहासिक मुकाबले को देख रहे करोड़ों भारतीयों की भी आंखें नम हो गई। हॉकी के गौरवशाली इतिहास को नये सिरे से दोहराने के लिये मील का पत्थर साबित होने वाली इस जीत ने पूरे देश को भावुक कर दिया। इस रोमांचक जीत के कई सूत्रधार रहे जिनमें सिमरनजीत सिंह, हार्दिक सिंह, हरमनप्रीत सिंह और रूपिंदर पाल सिंह तो थे ही लेकिन आखिरी पलों में पेनल्टी बचाने वाले गोलकीपर श्रीजेश ने सभी का दिल जीत लिया। भारतीय टीम 1980 मास्को ओलंपिक में अपने आठ स्वर्ण पदक में से आखिरी पदक जीतने के 41 साल बाद ओलंपिक पदक जीती है। मॉस्को से तोक्यो तक के सफर में बीजिंग ओलंपिक 2008 के लिये क्वालीफाई नहीं कर पाने और हर ओलंपिक से खाली हाथ लौटने की कई मायूसियां शामिल रहीं। तोक्यो खेलों में यह भारत का पांचवां पदक होगा। 100 सालों से भारत ओलंपिक में अपनी टीम भेज रहा है। ऐसे में कुछ शानदार यादें भारत ने सजोयी हैं। हालांकि भारत ने 1928 में एम्सटर्डम ओलंपिक में अपना पहला स्वर्ण पदक हासिल किया था। उसके बाद भारत ने कभी भी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। साल 1928 के ओलंपिक में भारतीय हॉकी पुरुष टीम ने देश का सर गौरव से ऊंचा कर दिया था। उस वक्त भारत ने हॉलैंड को 3-0 से हराया था। इसके बाद 1932, 1936, 1948, 1952 और 1956 में लगातार भारतीय हॉकी टीम ने भारत को स्वर्ण पदक दिलाया।

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