आज ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ हॉकी के जादूगर का जन्म दिन
हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की जयंती को देश ‘खेल दिवस’ के रूप में मना रहा है। यह दिन हमें देश में खेलों के विकास को रफ्तार देने के लिए प्रोत्साहित करता है। एक तरफ हम दुनिया की छठी सबसे बड़ी आर्थिक ताकत बन गए हैं, पर खेलों में हमारी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। हालांकि समय-समय पर हमारे पास हॉकी के जादूगर, क्रिकेट के भगवान, बैडमिंटन के विश्व चैंपियन, युगल टेनिस के विंबलडन विजेता, स्नूकर और बिलियर्ड के वर्ल्ड चैंपियन रहे हैं। दरअसल, खेलों के प्रति हमारा नजरिया ही परेशानी का कारण है। आज खेलों के लिए उचित योजना, नीति, समर्पण और ईमानदार प्रयासों की सबसे ज्यादा जरूरत है। अब भी स्कूल स्तर पर हमें अच्छे खिलाड़ी तराशने होंगे।
आज भी अधिकांश स्कूलों का लक्ष्य अच्छी किताबी शिक्षा देना ही है। अगर खेलों को बढ़ावा देना है तो हमें नाइजीरिया, ताइवान, जमैका, क्यूबा, मैक्सिको और अफ्रीकी देशों के खेल ढांचे को अपनाना होगा। वहीं खेलों के लिए अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी जैसे देशों से सुविधाएं जुटानी होंगी। अगर हम अधिक जनसंख्या को अपनी कमजोरी न बनाकर उसे ताकत में तब्दील कर पाएं तो हम भी विश्व में खेल ताकत के रूप में उभर सकते हैं। खेलों में आगे आने का अचूक मंत्र है छोटी उम्र में ही खेलों में रुचि रखने वाले, स्वस्थ और दृढ़ इच्छाशक्ति वाले बच्चों को चुनना। उन्हें योग्य प्रशिक्षकों से प्रशिक्षण दिलाना, सुविधाएं मुहैया कराकर अच्छा कॅरिअर विकल्प देना होगा। इस नीति की कामयाबी के लिए जरूरी है कि बच्चे का मूल्यांकन करते वक्त खेल में उसके योगदान और उपलब्धि के महत्व को बढ़ाना होगा।
खेल के हीरे को मिले ‘भारत रत्न’ हर्ष का विषय है कि मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन पर ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ मनाया जाता है और अब देश का सर्वोच्च खेल रत्न पुरस्कार भी उनके नाम से ही दिया जाएगा। इन सबसे आगे बढ़कर यदि भारत सरकार तमाम वर्षों से हॉकी और खेल प्रेमियों की मांग का समर्थन करते हुए मेजर ध्यानचंद को भारत का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ देने की घोषणा भी कर दे, तो यह भी देश के खेल प्रेमियों के लिए एक महत्वपूर्ण निर्णय होगा, क्योंकि मेजर ध्यानचंद और उनके छोटे भाई कैप्टन रूप सिंह, दोनों ही ओलंपिक हॉकी के विजेताओं में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं।
विदित रहे कि ध्यानचंद परिवार के पास तीन ओलंपिक पदक और तीन विश्व कप पदक हैं। वास्तव में मेजर ध्यानचंद के परिवार के लिए यह अपने आप में एक न केवल बड़ी उपलब्धि है, बल्कि संपूर्ण भारत वासियों के लिए भी गौरव का क्षण है। हिटलर ने जर्मनी में मेजर ध्यानचंद को अपने पास बुलाकर उनसे कहा था, “यदि भारत के स्थान पर हमारे देश से हॉकी के मैच खेलोगे तो मैं तुम्हें मनमाफिक मान-सम्मान और पैसा दूंगा। क्या दिया है तुम्हें भारत देश ने?” इस पर मेजर ध्यानचंद ने कहा था, “देश की जिम्मेदारी नहीं है मुझे आगे बढ़ाने की, हमारी जिम्मेदारी है कि हम सब मिलकर अपने देश को शिखर की ऊंचाइयों तक ले जाएं।”
वास्तव में मेजर ध्यानचंद के विचारों में देशभक्ति की झलक प्रारंभ से ही दिखी। यही कारण है कि उनको हॉकी का जादूगर कहा गया। उनके समय में भारत ने कई बार ओलंपिक स्वर्ण पदक जीते और उन्होंने सर्वाधिक गोल किए। ऐसे महान खिलाड़ी को सम्मान देते हुए भारत सरकार द्वारा सर्वोच्च खेल रत्न पुरस्कार मेजर ध्यानचंद के नाम से किया जाना हम सबको गौरवान्वित करने वाला विषय है। इसी क्रम में भारत सरकार और राज्य सरकारों को चाहिए कि वे भारत के भीतर सभी खेल मैदानों के नाम किसी राजनेता के स्थान पर ओलंपिक, विश्व और एशियाई खेलों के विजेताओं के नामों पर रखने पर विचार करें और संविधान में इसकी व्यवस्था करें, ताकि खिलाड़ियों को समुचित सम्मान मिल सके।