सदन में भाजपा ने कहा- इन आंदोलनकारियों में अब वास्तविक किसानों की भागीदारी नहीं

हिसार, हरियाणा विधानसभा में आजकल किसानों पर जमकर बवाल कट रहा है। उन किसानों के नाम पर राजनीति हो रही है, जो आंदोलन में शामिल होने की बजाय अपने खेतों में गेहूं और सरसों की फसल तैयार करने में जुटे हैं। ये वे किसान हैं, जिन्हें तीन कृषि कानूनों के फायदे या नुकसान से बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। किसी को अगर फर्क पड़ रहा है तो उन राजनेताओं, जो इन आंदोलनकारियों को उकसाने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने दे रहे।

विधानसभा में चर्चा के दौरान भाजपा ने तो यहां तक कह दिया कि पूरे देश में कहीं आंदोलन नहीं है, लेकिन दिल्ली-हरियाणा की सीमा पर आंदोलनकारी अभी भी जमे हुए हैं, क्यों? और कौन उन्हें उकसा रहा? सदन में भाजपा ने कहा कि इन आंदोलनकारियों में अब वास्तविक किसानों की भागीदारी नहीं है। आंदोलन का झंडा उन लोगों ने थाम रखा है, जो या तो कांग्रेसी हैं या फिर कांग्रेसियों ने जिन्हें बैठा रखा है।

बात तो यहां तक कही गई कि खास वर्ग के लोग ही इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी के इस गरम बयान पर सदन में काफी हंगामा हुआ। कांग्रेस ने असली किसान और नकली किसान को आधार बनाते हुए भारतीय जनता पार्टी को घेरने की कोशिश की, लेकिन सवाल यह खड़ा हो रहा कि आखिर इस आंदोलन की परिणति क्या होगी? क्या यह आंदोलन यूं ही चलाया जाता रहेगा? क्या दिल्ली-हरियाणा सीमा के नजदीक स्थापित इंडस्ट्री को विस्थापित होना पड़ेगा?

भाजपा की ओर से जवाब आया कि ऐसा हरगिज नहीं होने देंगे। कांग्रेस खासकर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके राज्यसभा सदस्य बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा इन आंदोलनकारियों को उठाने की जिम्मेदारी लें, क्योंकि अधिकतर आंदोलनकारी कांग्रेस विधायकों के समर्थक हैं, जो तीन कृषि सुधार कानूनों के विरोध की आड़ में अपना आधार मजबूत करने के प्रयास में हैं। कांग्रेस ने जवाब दिया कि भाजपा कुछ तो पहल करे। थोड़ा केंद्र सरकार आगे बढ़े और थोड़ा किसान आगे बढ़ेंगे, तभी कोई रास्ता निकलेगा। इस पूरे आंदोलन में अगुवाई करने वाले करीब तीन दर्जन किसान संगठनों की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। चर्चा तो यहां तक हो रही है कि उत्तर प्रदेश से हरियाणा आकर आंदोलन का झंडा थामने वाले राकेश टिकैत वास्तव में कितने बड़े किसान हैं?

मुजफ्फरनगर जिले के सिसौली के ही एक व्यक्ति ने इंटरनेट मीडिया पर सवाल उठाया कि यदि बड़े चौधरी साहब (स्व. महेंद्र सिंह टिकैट) और उनके बेटे नरेश टिकैत को छोड़ दिया जाए तो बाकी बचे राकेश टिकैत की पिछले वर्षो में बढ़ी संपत्ति का आधार तलाशा जाना चाहिए। यह बात इसलिए उठाई गई, क्योंकि राकेश टिकैत की जमीन का रकबा उस हिसाब से नहीं बढ़ा, जिस हिसाब से फसल उत्पादन और उससे होने वाली आय में बढ़ोतरी हो रही है।

अब आंदोलन की वास्तविक तस्वीर पर नजर डालते हैं। किसानों के रहनुमाओं को डर है कि एमएसपी बंद हो जाएगी और मंडियां खत्म हो जाएंगी, लेकिन हरियाणा सरकार की ओर से विधानसभा में स्पष्ट कर दिया गया है कि इस सीजन में सरकार 83 लाख टन गेहूं और सात लाख टन सरसों खरीद की तैयारी कर रही है। राज्य का कृषि बजट 5,280 करोड़ रुपये किया जा चुका है। खरीद के लिए 400 से ज्यादा मंडियां बनाई गई हैं, जिसका मतलब साफ है कि भविष्य में राज्य में मंडी व्यवस्था भी बरकरार रहेगी और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीद भी होगी। रही एमएसपी की गारंटी का कानून बनाने की बात, तो विपक्ष के नेता हुड्डा की इस मांग पर मुख्यमंत्री मनोहर लाल तर्क देते हैं कि सारी फसलें यदि एमएसपी पर खरीदने की गारंटी का कानून बना दिया गया तो यह केंद्र सरकार के कुल बजट से भी बहुत अधिक होगा।

हरियाणा सरकार इस बार एक अप्रैल से गेहूं व सरसों की खरीद प्रक्रिया शुरू करने वाली है। अमूमन यह 10 अप्रैल के आसपास शुरू हो पाती है। गेहूं, सरसों, धान और बाजरे का खरीद लक्ष्य सालाना बजट में दर्शाकर सरकार ने आंदोलन कर रहे किसानों को यह संदेश देने की कोशिश की है कि मंडी व्यवस्था, फसलों के भुगतान और रेट को लेकर उनकी आशंकाएं पूरी तरह से निर्मूल हैं। हरियाणा सरकार ने मक्का, सूरजमुखी, मूंग, चना और मूंगफली की सरकारी खरीद भी बरकरार रहने का ऐलान अपने वार्षकि बजट में किया है। यह फसलें बाकी राज्यों में एमएसपी पर नहीं खरीदी जाती। इस चक्कर में पड़ोसी राज्यों का काफी अनाज हरियाणा में आ जाता है।

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