डॉ. विकास ने बायोरिज़ॉर्बेबल स्कैफोल्ड तकनीक से की अत्याधुनिक कोरोनरी इंटरवेंशन
देहरादून,। रुद्रपुर, उत्तराखंड स्थित कृष्णा हॉस्पिटल एंड क्रिटिकल केयर सेंटर के इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. विकास सारसर द्वारा हाल ही में दो युवा हृदय रोगियों में गंभीर कोरोनरी आर्टरी ब्लॉकेज के मामलों में बायोरिज़ॉर्बेबल स्कैफोल्ड (बीआरएस) तकनीक से अत्याधुनिक कोरोनरी इंटरवेंशन की गई। क्रमशः 36 और 49 वर्ष के ये दोनों मरीज सीने में तेज दर्द और भारीपन की शिकायत के साथ अस्पताल पहुंचे थे और इनकी जाँच में लेफ्ट एंटीरियर डिज़ेंडिंग (एलएडी) आर्टरी में अत्यंत गंभीर ब्लॉकेज पाया गया। चूंकि दोनों मरीज अपेक्षाकृत युवा थे और स्थायी मेटैलिक स्टेंट से बचना चाहते थे, इसलिए डॉ. सारसर ने बायोरिज़ॉर्बेबल स्कैफोल्ड का विकल्प चुना। यह निर्णय दोनों मरीजों के लिए जीवन के दूसरे अवसर के रुप में वरदान के रुप में आया और इसके परिणाम अत्यंत सकारात्मक रहे।
पहले मामले में, 36 वर्षीय पुरुष को अचानक सीने में दर्द और भारीपन हुआ। एंजियोग्राफी में एलएडी आर्टरी में गंभीर स्टेनोसिस (संकुचन) का पता चला। इस युवा मरीज की दीर्घ जीवन की संभावना और ड्रग-एल्यूटिंग मेटैलिक स्टेंट्स (डीईएस) के संभावित दीर्घकालिक दुष्प्रभावों को देखते हुए डॉ. सारसर ने बायोरिज़ॉर्बेबल स्कैफोल्ड का चयन किया। इंट्रावैस्कुलर अल्ट्रासाउंड (आईवीयूएस) के माध्यम से एडवांस इमेजिंग कर सटीक माप सुनिश्चित किया गया, उसके बाद सावधानीपूर्वक प्री-डाइलेटेशन, स्कैफोल्ड डिप्लॉयमेंट और एग्रेसिव पोस्ट-डाइलेटेशन किया गया ताकि वेसल की उपयुक्तता सुनिश्चित की जा सके। दूसरे मरीज, 49 वर्षीय पुरुष में भी समान लक्षण थे और एलएडी में गंभीर ब्लॉकेज की एंजियोग्राफी द्वारा पुष्टि की गई। आवश्यक जोखिमों और संभावनाओं पर चर्चा के बाद इस मामले में भी बीआरएस तकनीक को अपनाया गया। दोनों मरीजों को डुअल एंटिप्लेटलेट थैरेपी के साथ सफलतापूर्वक डिस्चार्ज किया गया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि इस तकनीक के साथ दीर्घकालिक थ्रोम्बोसिस (खून के थक्के बनने) का खतरा बहुत कम है। युवा मरीजों के लिए बायोरिज़ॉर्बेबल स्कैफोल्ड के विशेष लाभ हैं, विशेष रूप से उन मामलों में जहाँ रोग प्रारंभिक अवस्था में हो या केवल एक ही धमनी प्रभावित हो। स्थायी मेटैलिक स्टेंट से बचाव भविष्य में जटिलताओं के जोखिम को कम करता है और धमनियों की लचीलापन भी बनाए रखता है। यह स्कैफोल्ड धीरे-धीरे शरीर में अवशोषित हो जाता है, जिससे भविष्य में यदि दोबारा कोई हस्तक्षेप करना आवश्यक हो, तो कोई स्थायी बहरी वस्तु बाधा नहीं बनती।